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जीरो वाट लैंप द्वारा बिजली की खपत और विकल्प के तौर पर एलईडी बल्ब का उपयोग

By on August 27, 2015

हम सब अपने घरो में और आसपास, हर समय, कम तीव्रता (वाट) बल्ब के उपयोग से भलीभाति परिचित हैं| इन कम तीव्रता (वाट) बल्बो का उपयोग, कुछ लोग फोटो फ्रेम/चित्रों, छोटे मंदिरों/धार्मिक क्षेत्र इत्यादि में सजावटी रोशनी करने के लिए करते है| कुछ लोग इनका उपयोग ‘नाईट लैम्प्स’ की भाति भी करते हैं| कुछ ज्योतिषियों के अनुसार हरा ‘नाईट लैम्प्स’ का उपयोग करने से बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में अच्छी सफलता मिलती हैं| इन कम तीव्रता ‘इन्कैंडेस्केन्ट’ बल्बो को जीरो वाट बल्ब कहा जाता हैं| इन बल्बों को दी गयी परिभाषा के अनुसार, लोगों को ऐसा लगता होगा यह बल्ब बिजली की ना के बराबर खपत करते हैं और इसलिए उनको हर समय उपयोग करने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है| लेकिन, क्या यह बल्ब वास्तव में शून्य वाट का उपभोग करते हैं?

इनको ‘जीरो वाट बल्ब’ नाम क्यों दिया गया हैं?

जीरो वाट बल्ब, बिजली की 12-15 वाट खपत करते हैं| हालांकि, पुराने दिनों में, जब सभी उपकरणों को बंद कर दिया जाता था, तब सिर्फ जीरो वाट बल्ब को ही ओन रहने दिया जाता था, तब के विद्युत मीटर इतने ‘परिष्कृत भी नहीं’ होते थे, की वह इतने कम परिमाण की शक्ति को माप सके| तबके विद्युत मीटर, इनके उपभोग को ‘शून्य’ बिजली खपत दिखाते थे और तबसे इनका नाम ‘जीरो वाट बल्ब’ पड़ गया था| इन बल्बो का नाम ‘जीरो वाट बल्ब’ इसलिए नहीं पड़ा क्योंकि यह शून्य बिजली की खपत करते हैं, बल्कि पुराने मीटर की अक्षमता के कारण पड़ा जो की सही ढंग से उनके बिजली की कुल खपत को मापने में सक्षम नहीं होते थे| इस गलत धारणा के कारण ही इन बल्बों के अनियंत्रित उपयोग करने की परंपरा का जन्म हुआ|

‘जीरो वाट बल्ब’ कितने लाभदायक होते हैं?

सौभाग्य या फिर दुर्भाग्य से, इनदिनों आज कल के उन्नत विद्युत मीटर, यह सुनिश्चित करते हैं की किसी भी उपकरण द्वारा एक अंश बिजली खपत भी प्रदर्शित हो| इस कारण ऊपर ग़लतफ़हमी का पालन करने वाले उपयोगकर्ताओं के लिए यह उच्च बिजली के बिल में प्रदर्शित होता हैं| एक उदाहरण लेते हैं:

जीरो वाट का बल्ब की बिजली की खपत: 15वाट

चालू घंटे: 24

इस प्रकार, प्रति वर्ष बिजली खपत (365 *15 *24)/1000 = 131.4 किलो वाट घंटा

बिजली की इकाई लागत के अनुसार 8 रुपये लेते हुए बिल की वार्षिक राशि होगी= रुपये 1041.2

इस्तेमाल किये गए बल्बों की संख्या से इसे गुणा करके आप को यह आभास हो जायेगा की यह बल्ब आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत लाभकारी नहीं हैं|

एक मामले का अध्ययन

एक अनुमान के मुताबिक केरल राज्य में तकरीबन 8 लाख के आसपास लोग जीरो वाट बल्ब का उपयोग करते हैं| इन बल्बों की प्रत्येक बिजली खपत 12-15 वाट का उपभोग करने के बाद, पूरे राज्य में कुल बिजली की खपत में 9 मेगावाट (9* 10,00,000 वाट) की वृद्धि हुई हैं| इससे यह साबित होता हैं की भले ही इन बल्बों के उपयोग से काफी कम बिजली की खपत होती हैं, पर इनके अनियंत्रित उपयोग से बिजली की खपत या अपव्यय काफी मात्रा में हो सकती हैं|

नाईट लैम्प्स के रूप में इस्तेमाल हो रहे जीरो वाट बल्ब क्या वे सुरक्षित होते हैं?

रात्रि के वक़्त रौशनी (विशेष रूप से रेटिना पर गिरनेवाली) की गुणवत्ता, एक प्रमुख कारण हैं जिसकी वजह से आँखों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता और उचित नींद भी नहीं आती हैं| एक प्रमुख नींद शोधकर्ता स्टीफन लॉकलेय, के अनुसार मात्र आठ लक्स स्तर की मंद रोशनी ‘मेलाटोनिन’ के उत्पादन में हस्तक्षेप करने में सक्षम होती हैं (टेबल लैंप में यह चमक ज्यादा होती हैं, और नाईट लैंप के मुकाबले यह दुगुनी होती हैं) | मेलाटोनिन एक हार्मोन है, जिसका रात्रि के वक़्त उत्पादन व स्रवण होता हैं| मेलाटोनिन प्रजनन, शरीर के वजन, और ऊर्जा संतुलन के नियमन के लिए भी आवश्यक होता हैं| यह नींद और किर्काडिअन (एक ऐसी जैविक प्रक्रिया जो नियमित और निरंतर 24 घंटे के अंतराल में होती हैं) लय के तुल्यकालन के लिए भी आवश्यक होता हैं| इसके अलावा, यह कैंसर ट्यूमर के विकास को दबाने के लिए भी इस्तेमाल होती हैं| मंद रोशनी के संपर्क भी मेलाटोनिन के उत्पादन को प्रभावित करता है| इसके अलावा, अनुसंधान से यह पता चला हैं की नीली बत्ती का उपयोग मेलाटोनिन के उत्पादन में सबसे हानिकारक प्रभाव डालता हैं| जिन छोटे बच्चो को अंधेरे का डर लगता हैं, उनके लिए नीले या सफेद नाईट लैंप की तुलना में एक लाल नाईट लैंप कही उपयोगी सिद्ध होता हैं, क्यूंकि वह मेलाटोनिन उत्पादन पर कम से कम प्रभाव डालता हैं|

एलईडी जीरो वाट के बल्ब के लिए एक विकल्प होता हैं

अगर आप अभी भी शून्य वाट के बल्ब का इस्तेमाल करने में रुचि रखते हैं, तो इन दिनों बाजार में कई एलईडी विकल्प उपलब्ध हैं| यह एलईडी विकल्प मात्र 1 वाट बिजली की खपत करते हैं, जबकि “जीरो वाट” बल्ब 15 वाट तक की बिजली की खपत करते हैं| इनके प्रकार पर निर्भर होते हुए इनके दाम 75 रुपये से 150 रुपये प्रति एलईडी बल्ब तक जातें हैं, और 14 वाट की बचत होने से हम लागत की जल्द वसूली भी कर सकते हैं| इसके अलावा एलईडी का ज्यादा वर्षो तक इस्तेमाल से एक अतिरिक्त लाभ तो होता ही हैं| जीएम, जो की लोकप्रिय ब्रांडों में से एक है, ऐसे कई एलईडी मॉडल बनाता हैं| हमने कुछ मॉडल नीचे दिखाया हैं| उनमें से कुछ में स्वचालित ओन-ऑफ सुविधा होती हैं, जो पर्याप्त रोशनी नहीं होने पर बल्ब को बंद कर देते हैं और पर्याप्त रोशनी होने पर यह बल्ब को फिर से स्विच ओन भी कर देते हैं|

ये बात वाट्स की है!!

ऊपर व्यक्त हुए “जीरो वाट” बल्ब के प्रभाव की समीक्षा करते हुए, हम बचत सुनिश्चित करने के लिए इन सुझावों का पालन करने की अनुशंसा करते हैं, ताकि हम अपनी ऊर्जा, धन और स्वास्थ्य की महत्त्वपूर्ण बचत एवं सुरक्षा कर सके|

1) आप अपने जीरो वाट बल्ब को 1 वाट एलईडी से बदल दे| वे शून्य वाट के बल्ब की तुलना में अधिक कुशल होते हैं और प्रकाश के लगभग एक ही मात्रा का उत्पादन करते हैं| इस प्रकार, बिजली की खपत 15 वाट से घटकर 1 वाट हो जाती हैं, जिसके कारण बिजली बिल पर आवश्यक बचत संभव हो पाती हैं|

2) रात्रि के वक़्त जीरो वाट बल्ब के प्रयोग से बचना चाहिए| यदि आवश्यक हो तो लाल एलईडी बल्ब का उपयोग करना चाहिए| ना केवल वह कम ऊर्जा की खपत करते हैं, बल्कि वे कम से कम हानिकारक भी होते हैं|

3) आप यह सुनिश्चित करें की मौजूदा शून्य वाट के बल्ब अनावश्यक रूप से ऑन ना हो और इस्तेमाल न होने पर उन्हें बंद कर दिया जाएं| हमे यह भी नहीं भूलना चाहिए की “छोटे बूँदें” से ही एक शक्तिशाली सागर का निर्माण होता हैं|

सन्दर्भ

http://www.electrotechnik.net/2010/01/does-zero-watts-bulb.html

http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-business/some-light-on-energy-savings/article336999.ece

http://www.dailymail.co.uk/health/article-755/Think-twice-use-night-light.html

http://www.health.harvard.edu/newsletters/Harvard_Health_Letter/2012/May/blue-light-has-a-dark-side/

http://sleepwellchildren.com/2013/07/how-to-get-the-best-use-out-of-a-night-light-2/

http://www.motherearthnews.com/nature-and-environment/red-light-for-a-healthy-nights-sleep-zb0z1205zsan.aspx

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