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सोलर शब्दावली – फोटोवोल्टेइक, पेनल्स, मॉड्यूल, सेल, वोल्टेज, वाट और करंट

By on May 7, 2015

हमने हमारी वेबसाइट पर कई लेख प्रकाशित किये हैं,  जिससे की, आम लोगों को अपने घरों और ऑफिस में सोलर फोटोवोल्टिक का उपयोग करने, व उनके बुनियादी सिधान्तो को समझने में मदद मिल सके| हमने हमारे पिछले लेखो में पीवी गाइड, सोलर पैनल की कीमतों, सोलर थर्मल/बिजली ग्रिड और ऑफ ग्रिड अनुप्रयोगों, इनवर्टर, आदि पर चर्चा की है| इस लेख में हम सोलर फोटोवोल्टिक के बारे में अधिक तकनीकी जानकारी प्रदान करेंगे, ताकि लोगो को इस प्रौद्योगिकी को समझने में अधिक मदद मिल सके| हमारा इरादा यही हैं की, हम लोगो को सोलर फोटोवोल्टिक प्रौद्योगिकी के बारें में उपयोगी जानकारी प्रदान कर, उनकी एक सही निर्णय लेने में मदद कर सके|

सोलर फोटोवोल्टिक सेल्स क्या होते हैं?

सोलर फोटोवोल्टिक सेल्स जैसे की नाम से ही जाहिर होता है, यह पीवी सेल होते हैं जो सूरज की रोशनी लेकर उसे विद्युत ऊर्जा में बदल देते है| एक पीवी सेल, पीवी मॉड्यूल के भीतर का सबसे छोटा सेमीकंडक्टर तत्व होता हैं, जो सूरज की रोशनी लेकर उसे तुरंत विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देता हैं (डायरेक्ट करंट वोल्टेज और करंट) (स्रोत: सनशोट इनिशिएटिव)| एक पीवी सेल सिलिकॉन से बना होता हैं और 3 प्रकार में उपलब्ध होता है:

  • मोनो क्रिस्टलीय सेल: मोनो क्रिस्टलीय एकल (सिंगल) सिलिकॉन क्रिस्टल से बनता हैं| वे दिखने में सौम्य (चिकना) होता है| मोनो क्रिस्टलीय पीवी एक प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में सोलर ऊर्जा को परिवर्तित करने में सबसे अधिक कुशल होते हैं, हालांकि वह सबसे महंगे भी होते हैं|
  • पाली क्रिस्टलीय सेल: पाली क्रिस्टलीय पीवी, बहु क्रिस्टलीय सिलिकॉन का समूह होता हैं| वह मोनो क्रिस्टलीय पीवी की तुलना में कम कुशल एवं सस्ते होते हैं|
  • थिन फिल्म और अमोर्फोस सेल: ये गैर-क्रिस्टलीय (या अनाकार, अमोर्फोस) सिलिकॉन के बने होते हैं,  इनको एक सतह पर एक पतली फिल्म के रूप में रखा जाता हैं| यह ऊपर दोनों क्रिस्टलीय पीवी की तुलना में सबसे कम कुशल एवं सबसे सस्ते होते हैं| यह बिलकुल भी कठोर नहीं होते हैं और इस तरह इन्हे अलग-अलग आकार में तह (फोल्ड) भी कर सकते हैं| हालांकि, उपयोग के पहले कुछ महीनों के बाद उनकी बिजली उत्पादन क्षमता कम हो जाती है और इस प्रकार स्थिरीकरण के बाद ही थिन फिल्म और अमोर्फोस सेल का उद्धृत उत्पादन का पता लगाना चाहिए (स्रोत: सोलर तथ्यों)|

सोलर पीवी मॉड्यूल और पैनल क्या होते हैं?

हालांकि मॉड्यूल और पैनल शब्दों का इस्तेमाल एक दूसरे के स्थान पर या पूरक की भाति  अक्सर होता हैं, लेकिन वास्तविकता में दोनों भिन्न अर्थो वाले अलग-अलग शब्द हैं| मॉड्यूल पीवी सेल/कोशिकाओं में सबसे छोटा समूह होता हैं और सभी आवश्यक तत्वों (जैसे की इंटरकनेक्शन्स, टर्मिनल्स, डिओडेस, आदि) को अपने में सम्मलित करता हैं| मॉड्यूल पर्यावरण की दृष्टि से भी पर्याप्त सुरक्षित होते है| यह एक निश्चित वोल्टेज और करंट का भी उत्पादन करने में सक्षम होते हैं| उदाहरण के तौर पर 36 कोशिकाओं के एक मॉड्यूल 12 वोल्ट वोल्टेज का उत्पादन करने में सक्षम होता हैं| एक पैनल वांछित वोल्टेज और करंट के आधार पर एक या एक से अधिक मॉड्यूल का एक संग्रह होता है|

सोलर पैनलों द्वारा उत्पादित वोल्टेज, करंट और वाट का क्या मान हैं?

जब आप सोलर पैनल को देखेंगे, तो आपको Pmax, Voc, Vmp, Imp और ISC जैसे शब्दों का सामना करना पड़ेगा| सबसे प्रमुख प्रश्न भी  आपके सामने यह होगा कि “क्या यह प्रणाली मेरे लिए काम करेगी?”

अब, आपके पास 2 तरीके हैं, जिसमें आप एक सोलर पैनल का सही उपयोग कर सकते हैं:

1) पैनल से उत्पादन ले और बैटरी को चार्ज करें, फिर बैटरी को अपने सिस्टम से कनेक्ट करें| अगर आपको कई उपकरणों का उपयोग करना है, तब आपको एक इन्वर्टर (इन्वर्टर डीसी को एसी में परिवर्तित करता हैं) की भी आवश्यकता पड़ेगी|

2) आप सीधे एक पैनल को भी प्रयोग में ला सकते हैं, बिल्कुल वैसे जैसे आप एक बैटरी (डीसी से उत्पादन करने के लिए) का इस्तेमाल करते हैं| इस तरह की प्रणाली को ‘डायरेक्टली कपल्ड सिस्टम’ भी कहा जाता है|

बैटरी का उपयोग करने से यह लाभ होता हैं कि, ऊर्जा संग्रहीत होती हैं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उपयोग में ली जा सके| और अगर पैनल का सीधे उपयोग किया जाएं, तब ऊर्जा का उपयोग उत्पादन के दौरान भी हो सकता हैं (दिन के समय के दौरान)|

सोलर पैनल हमेशा डीसी करंट का उत्पादन करते हैं और सीधे इस्तेमाल किये जा सकते हैं (जैसा की पॉइंट 2 में भी ऊपर लिखा गया हैं)| लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यह होती हैं, पैनलों की वाट क्षमता, वोल्टेज और करंट परस्पर भिन्न होते हैं|  यह पर्यावरण के तापमान के साथ और प्रकाश की मात्रा पर भी बदलते रहते हैं| जितना प्रकाश कम होता हैं, वाट क्षमता और करंट का उत्पादन भी उतना ही कम होता हैं| तापमान अधिक होने पर, यह प्रणाली कम वोल्टेज उत्पन्न करती हैं| नीचे एक चित्र के माध्यम से भी यह दर्शाया गया हैं:

SolarPanelOVT
 

नीचे लिखे कुछ तथ्य आपको सोलर पैनलों के बारे में खोजबीन करने पर मिलेंगे: 

1) मैक्स पावर (Pmax): यह मानक परीक्षण की स्थिति में, पैनल द्वारा अधिकतम उत्पन्न पावर (या वाट) होता हैं| मानक परीक्षण आमतौर पर सोलर विकिरण के 25 डिग्री तापमान के माप 1000 W/m2  पर होता हैं (स्रोत: इनआरईएल)|

2) Voc (या खुले सर्किट का वोल्टेज): यह पैनल द्वारा मानक परीक्षण की स्थिति में, अधिकतम उत्पन्न वोल्टेज होते हैं| अधिकतम उत्पन्न वोल्टेज तब होता हैं जब, पैनल पूर्णतः खुले सर्किट रूप में होते हैं या जब पैनल से कुछ नहीं से जुड़ा होता हैं और सिस्टम में करंट की मात्रा भी शून्य होती हैं| 

3)  Isc (या शार्ट सर्किट करंट): यह मानक परीक्षण परिस्थितियों में, सोलर पैनल के माध्यम से प्रवाह होता शार्ट सर्किट करंट होता हैं| 

4) Vmp (या अधिकतम पावर पर वोल्टेज): एक सोलर सेल में, एक निश्चित करंट की लगातार उत्पादन करने की क्षमता होती हैं| करंट, एक निश्चित वोल्टेज पर और एक निश्चित प्रकाश स्तर के लिए ही उत्पन्न होता हैं| अगर आप ऊपर ग्राफ को देखे, तो पाएंगे की करंट एक निश्चित वोल्टेज की सीमा तक स्थिर रहता हैं, और पैनल इस वोल्टेज पर अधिकतम बिजली उत्पन्न करता हैं| इस वोल्टेज को Vmp कहा जाता है और मानक परीक्षण परिस्थितियों में ही इसकी गणना की जाती है|

5) Imp (या अधिकतम पावर पर करंट): पैनल द्वारा अधिकतम वोल्टेज (Vmp) पर उत्पन्न अधिकतम करंट या बिजली को Imp कहते हैं|

ऊपर विवरण को पड़ने से, एक मिथक जरूर टूटता है कि, “एक सोलर पैनल, अधिकतम बिजली का उत्पादन साल के सबसे गर्म दिन में ही करता होगा”| वास्तव में उच्च वातावरण    तापमान से बिजली का उत्पादन कम ही होता हैं| एक अपेक्षाकृत ठंडा दिन (जिसमे लगभग 30-35 डिग्री तापमान) और अच्छी धूप,  एक सोलर पैनल से बेहतर उत्पादन देने में ज्यादा सक्षम होता है|

चार्ज कंट्रोलरया  सोलर रेगुलेटरक्या होते हैं? 

यह एक स्थापित तथ्य हैं कि, एक सोलर पैनल लगातार वोल्टेज या निरंतर करंट का उत्पादन नहीं करता हैं, इसप्रकार इसका इस्तेमाल एक बैटरी के रूप में सीधे नहीं किया जा सकता हैं| इसीलिए हमे एक “चार्ज कंट्रोलर” या “सोलर रेगुलेटर” का उपयोग कर वोल्टेज और करंट को नियंत्रित करने की जरूरत पड़ती हैं| एक MPPT (या अधिकतम पावर प्वाइंट ट्रैकिंग) चार्ज कंट्रोलर का इस्तेमाल ‘डायरेक्ट कपल्ड प्रणाली’ (या प्रणाली जहाँ भार सोलर पैनल से सीधे जुड़ा होता है) में वोल्टेज को नियंत्रित करने में होता है| 

जब सोलर पैनल, एक बैटरी को चार्ज करने के लिए प्रयोग होता हैं, तब चार्ज कंट्रोलर का भी प्रयोग होता हैं| एक घर के लिए सोलर इन्वर्टर सिस्टम निम्नलिखित घटकों का उपयोग करते हैं:

  1. फ्रेम वाले पेनल्स
  2. चार्ज कंट्रोलर
  3. वायरिंग
  4. बैटरीज
  5. इन्वर्टर  (अगर डीसी पर चल रहा हो तब इसकी जरूरत नहीं पड़ती),

और  अगर आप सोलर पैनल (डायरेक्ट कपल्ड प्रणाली) का सीधे उपयोग कर रहे हो, तब आपको निम्नलिखित घटकों की जरुरत पड़ेगी: 

1) फ्रेम वाले पेनल्स

2) MPPT (मैक्सिमम पावर पॉइंट ट्रैकिंग) चार्ज कंट्रोलर

3) वायरिंग

4) बैटरीज

एक सोलर पैनल को सही आकर कैसे प्रदान करें?

हम ऊपर परिदृश्यों का विश्लेषण कर एक सोलर पैनल के सही आकार के निर्धारण में आपकी मदद करेंगे:

1) जो सोलर पैनल एक उपकरण के साथ सीधे इस्तेमाल होते हैं (डायरेक्ट कपल्ड प्रणाली) – इस मामले में उपकरणों की वोल्टेज और करंट आवश्यकताओ का पता लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण होता हैं| इसलिए यह पता लगाना भी महत्वपूर्ण हैं की उपकरण एसी या डीसी में किस पर चलता है| अगर उपकरण डीसी पर चलता हैं तो पैनल का चुनाव उसकी Vmp और Imp रेटिंग्स के अनुसार करना चाहिए और हमे उपकरणों की वोल्टेज आवश्यकताओ को भी ध्यान में रखना चाहिए| इसके अलावा हमे एक अतिरिक्त प्रभारी नियंत्रक MPPT की भी वोल्टेज नियंत्रित करने के लिए आवश्यकता पड़ेगी|

2) सोलर पैनल की ऊर्जा जिसका बैटरी में भंडारण किया गया हैं: इस मामले में, प्रणाली की ऊर्जा आवश्यकताओं का सही पता होना अत्यंत महत्वपूर्ण होता हैं| ऊर्जा आवश्यकताओं की गणना सारे उपकरणों की कुल वाट क्षमता के उपयोग के घंटे के साथ गुणा करके की जाती हैं| उदाहरण के लिए, अगर एक सोलर पैनल का उपयोग वाली प्रणाली, जिसमे एक 75 वाट का पंखा और दो ​​15 वाट सीएफएल हो, 10 घंटे संचालित हो रहे हो, तब आवश्यक कुल ऊर्जा की गणना हम इस प्रकार करेंगे:  (75  × 10)  + (1 × 15 × 10)  = 1050 वाट-घण्टा 

अब आप सोलर पैनल की मैक्स पावर (या Pmax) रेटिंग को देखेंगे|  अगर वो 525 वाट हैं, तब वह 1050 वाट-घण्टा की ऊर्जा २ घंटे में उत्पन्न करेगा| एक नियम के तहत यह माना जाता हैं की अच्छी धूप अमूमन 5 घंटे के लिए उपलब्ध होती हैं| तो एक 210 वाट Pmax प्रणाली आपकी जरूरतों को पूरी करने के लिए पर्याप्त होगा| कुछ स्थितियो में कम उत्पन्न ऊर्जा को समायोजित करने के लिए, आप थोड़ी बड़ी प्रणाली का भी चयन कर सकते हैं| 

दूसरे परिदृश्य में, आपको यह सुनिश्चित करना होगा की चुनी हुई बैटरीया और इन्वर्टर प्रणाली आपकी संपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त हैं या नहीं| इस पर हम और अधिक जानकारी अपने कुछ अगले लेखो में जरूर प्रकाशित करेंगे|

सन्दर्भ

http://www.nrel.gov/rredc/pvwatts/changing_parameters.html

http://www1.eere.energy.gov/solar/sunshot/glossary.html

http://www.solar-facts.com/panels/panel-efficiency.php

http://ecopia.com.au/how-to-choose-a-solar-panel

About the Author:
Abhishek Jain is an Alumnus of IIT Bombay with almost 10 years of experience in corporate before starting Bijli Bachao in 2012. His passion for solving problems moved him towards Energy Sector and he is keen to learn about customer behavior towards Energy and find ways to influence the same towards Sustainability. .

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